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कविता

पथ निहारता रहता पीपल

त्रिलोक सिंह ठकुरेला


पथ निहारता रहता पीपल,
किंतु न मैं उस तक जा पाता।

इस जीवन की भूल-भुलैया
मुझको अपने में उलझाती,
समय-डाकिया दे जाता है
अब भी स्मृतियों की पाती,
मैं सुदूर, पर कभी न भूला
पीपल से वह प्यारा नाता।

वह स्निग्ध पात पीपल के
वह सुमधुर संगीत सुहाना,
नटखट बचपन बुनता रहता
मन-भावन सा ताना-बाना,
जब मन होता तभी डाल पर
चढ़ जाता, खुश होकर गाता।

गुल्ली-डंडा, चोर-सिपाही,
कितने खेल छाँह में खेले,
स्वप्न हुए वे दिन सोने से
आते रहते याद अकेले,
मैं कल्पना के विमान में
कभी-कभी उन तक हो आता।


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